गोवर्धन पूजा: भगवान श्रीकृष्ण की लीला और प्रकृति पूजा का पवित्र पर्व


गोवर्धन पूजा क्या है?

दीपावली के अगले दिन मनाया जाने वाला गोवर्धन पूजा हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह पर्व कार्तिक मास की शुक्ल प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भक्तजन भगवान श्रीकृष्ण और गोवर्धन पर्वत की पूजा करते हैं।

गोवर्धन पूजा का मुख्य उद्देश्य प्रकृति, पर्वत, जल, पशु और अन्न के प्रति आभार व्यक्त करना है। यह पर्व हमें यह सिखाता है कि मानव जीवन केवल भक्ति नहीं, बल्कि पर्यावरण और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता से भी जुड़ा है।


गोवर्धन पूजा की कथा

गोवर्धन पूजा के पीछे एक प्रसिद्ध कथा जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि गोकुल में लोग हर वर्ष इन्द्र देव की पूजा किया करते थे ताकि वर्षा अच्छी हो और खेती फले-फूले।

एक दिन बालक कृष्ण ने गाँववालों से कहा — “हम जिस गोवर्धन पर्वत की वजह से गायों का पालन करते हैं, जो हमें घास, जल और छाया देता है, असली पूजनीय वही पर्वत है।”

गोकुलवासी श्रीकृष्ण की बात मानकर इन्द्रदेव की पूजा न करके गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे। यह देखकर इन्द्रदेव क्रोधित हो गए और उन्होंने गोकुल पर मूसलाधार वर्षा बरसाई।

तब श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठा लिया और सात दिनों तक गोकुलवासियों को वर्षा से बचाया। अंततः इन्द्रदेव ने श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी।

इस घटना के उपलक्ष्य में ही हर वर्ष गोवर्धन पूजा मनाई जाती है। यह पर्व श्रीकृष्ण के दिव्य स्वरूप और भक्तों की रक्षा के प्रतीक के रूप में जाना जाता है।


गोवर्धन पूजा का महत्व

गोवर्धन पूजा का धार्मिक, सामाजिक और पर्यावरणीय तीनों दृष्टिकोणों से गहरा महत्व है।

  1. प्रकृति की पूजा का प्रतीक:
    गोवर्धन पूजा हमें यह सिखाती है कि पर्वत, नदियाँ, पशु और वृक्ष – सभी हमारे जीवन का आधार हैं। इन्हीं के संरक्षण से जीवन संभव है।
  2. गाय और गोवंश का सम्मान:
    इस दिन गायों को नहलाया जाता है, सजाया जाता है और उनकी पूजा की जाती है। यह हमारे संस्कृति में गौमाता के प्रति आदर और कृतज्ञता को दर्शाता है।
  3. अहंकार के दमन का संदेश:
    इन्द्रदेव के अहंकार को भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी लीलाओं से शांत किया। इससे हमें विनम्रता और श्रद्धा का संदेश मिलता है।
  4. सामूहिकता और प्रेम का पर्व:
    गोवर्धन पूजा समाज में सहयोग, एकता और प्रेमभाव का प्रतीक है। लोग एक साथ मिलकर पूजा करते हैं और प्रसाद का वितरण करते हैं।

गोवर्धन पूजा की विधि

गोवर्धन पूजा का आयोजन प्रातः से लेकर शाम तक किया जाता है। इसकी विधि इस प्रकार है —

  1. घर की साफ-सफाई करें:
    सुबह स्नान के बाद घर और आंगन को स्वच्छ करें तथा गोबर से आंगन लीपें।
  2. गोवर्धन पर्वत का प्रतीक बनाएं:
    गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत का छोटा आकार बनाकर उसे फूलों, दीपों और रंगोली से सजाएं।
  3. भगवान श्रीकृष्ण और गोवर्धन पर्वत की पूजा करें:
    तुलसी, जल, दूध, दही, गुड़, चावल, पुष्प आदि से पूजा करें। गायों को गुड़-चारा खिलाना शुभ माना जाता है।
  4. अन्नकूट का आयोजन करें:
    इस दिन 56 प्रकार के व्यंजन (छप्पन भोग) बनाए जाते हैं और भगवान श्रीकृष्ण को अर्पित किए जाते हैं। इसके बाद भक्तों में प्रसाद बांटा जाता है।
  5. गोवर्धन की परिक्रमा करें:
    पूजा के बाद पर्वत (या उसके प्रतीक) की परिक्रमा की जाती है। यह परिक्रमा आत्मिक शांति और सौभाग्य देने वाली मानी जाती है।
  6. दीपदान करें:
    शाम को घर और मंदिरों में दीप जलाए जाते हैं। इसे अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक माना जाता है।

गोवर्धन पूजा 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त

वर्ष 2025 में गोवर्धन पूजा 22 अक्टूबर, बुधवार को मनाई जाएगी।

  • तिथि प्रारंभ: 21 अक्टूबर शाम 5:54 बजे
  • तिथि समाप्त: 22 अक्टूबर शाम 5:28 बजे
  • पूजा का शुभ मुहूर्त: प्रातः 6:26 से 8:42 बजे तक
  • अन्नकूट पूजा मुहूर्त: दोपहर 3:29 से 5:44 बजे तक

इस दिन प्रतिपदा तिथि का पालन करना अत्यंत शुभ माना जाता है।


क्षेत्रीय परंपराएँ

भारत के विभिन्न भागों में गोवर्धन पूजा अलग-अलग रूपों में मनाई जाती है।

  • मथुरा और वृंदावन:
    यहाँ इस पर्व का विशेष महत्व है। गोवर्धन पर्वत के चारों ओर भक्तजन लाखों की संख्या में “परिक्रमा” करते हैं।
    अन्नकूट महोत्सव के दौरान हजारों प्रकार के व्यंजन बनाकर भगवान श्रीकृष्ण को अर्पित किए जाते हैं।
  • गुजरात और राजस्थान:
    इन राज्यों में गोवर्धन पूजा को “अन्नकूट उत्सव” के नाम से भी जाना जाता है। मंदिरों में भव्य झांकियाँ सजाई जाती हैं।
  • उत्तर भारत:
    कई स्थानों पर यह पर्व गाय-पूजा और सामूहिक भोज के साथ मनाया जाता है।

गोवर्धन पूजा का आध्यात्मिक संदेश

गोवर्धन पूजा हमें यह सिखाती है कि सच्ची भक्ति का अर्थ केवल पूजा-पाठ नहीं, बल्कि प्रकृति और सृष्टि के हर तत्व का आदर करना है।

श्रीकृष्ण ने यह दिखाया कि देवता का वास्तविक रूप वही है जो प्रकृति में निवास करता है — जो हमें जीवन, अन्न और जल प्रदान करता है।
इसलिए गोवर्धन पूजा केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि पर्यावरण-संरक्षण का आध्यात्मिक प्रतीक भी है।


गोवर्धन पूजा से जुड़ी लोक परंपराएँ

  • इस दिन लोग एक-दूसरे के घर जाकर प्रसाद ग्रहण करते हैं।
  • बच्चे और महिलाएँ “गोवर्धन बाबा की जय” के गीत गाते हैं।
  • कई जगह पर गोवर्धन लीला का मंचन किया जाता है।
  • गौशालाओं में विशेष पूजा और भंडारा आयोजित होता है।

निष्कर्ष

गोवर्धन पूजा एक ऐसा पवित्र पर्व है जो भक्ति, प्रकृति और मानवता — तीनों के बीच सेतु का कार्य करता है। यह हमें सिखाता है कि जब हम प्रकृति की रक्षा करते हैं, तो वही हमें जीवन देती है।

श्रीकृष्ण द्वारा दिया गया यह संदेश आज भी उतना ही प्रासंगिक है —

“प्रकृति ही सच्ची देवी है, जो सबका पोषण करती है।”

इसलिए इस गोवर्धन पूजा पर न केवल भगवान की आराधना करें, बल्कि एक वचन लें —
कि हम प्रकृति, गाय और पर्यावरण की रक्षा करेंगे, क्योंकि यही सच्ची “गोवर्धन पूजा” है।

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