भारत की सांस्कृतिक परंपराएँ विविधता और भक्ति से भरी हुई हैं, और उन्हीं में से एक सबसे पवित्र पर्व है — छठ पूजा। यह पर्व सूर्य देवता और छठी मैया की उपासना का प्रतीक है, जिसमें आस्था, संयम और शुद्धता का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।
छठ पूजा न केवल धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह मानव और प्रकृति के बीच संतुलन का भी प्रतीक है।
हर वर्ष यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है, जो दीपावली के छठे दिन आता है। इस वर्ष छठ पूजा 2025 की शुरुआत 25 अक्टूबर से 28 अक्टूबर तक होगी। इन चार दिनों में भक्ति, तपस्या और पर्यावरण-प्रेम का अद्भुत उत्सव देखने को मिलता है।
छठ पूजा का इतिहास और पौराणिक कथा
छठ पूजा का उल्लेख वेदों और पुराणों में भी मिलता है। सूर्य उपासना का यह पर्व भारत में हजारों वर्षों से प्रचलित है। माना जाता है कि इस पूजा की शुरुआत त्रेता युग में हुई थी, जब भगवान राम और माता सीता अयोध्या लौटने के बाद कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को सूर्य देव की आराधना की थी।
दूसरी कथा के अनुसार, कर्ण (महाभारत के महान योद्धा) सूर्य देव के अनन्य भक्त थे। उन्होंने प्रतिदिन नदी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य दिया था। इसी परंपरा से छठ पूजा का स्वरूप विकसित हुआ।
कुछ मान्यताओं के अनुसार, छठी मैया — जिन्हें उषा या षष्ठी देवी कहा गया है — बालकों की रक्षक देवी मानी जाती हैं।
इनकी पूजा करने से संतान की रक्षा और परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
छठ पूजा का आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व
छठ पूजा केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं, बल्कि वैज्ञानिक और पर्यावरणीय दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
यह व्रत सूर्य और जल — दोनों जीवनदायिनी शक्तियों — के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का माध्यम है।
सूर्य हमारे शरीर में विटामिन D का मुख्य स्रोत है और मानसिक शांति से भी जुड़ा है।
जल जीवन का आधार है, और छठ पूजा में जब लोग जल में खड़े होकर अर्घ्य देते हैं, तो यह प्रकृति के तत्वों के साथ एकता का प्रतीक बन जाता है।
इसके अलावा, छठ पूजा में सात्विक आहार, उपवास और आत्म-संयम शरीर को डिटॉक्स करने का कार्य भी करते हैं।
यह पर्व मन, शरीर और आत्मा के संतुलन को बनाए रखने का अद्भुत उदाहरण है।
छठ पूजा 2025 की तिथि और चारों दिन का कार्यक्रम
छठ पूजा चार दिनों तक चलने वाला पर्व है — प्रत्येक दिन का विशेष महत्व है।
दिन | तिथि | अनुष्ठान | विशेषता |
---|---|---|---|
पहला दिन (नहाय-खाय) | 25 अक्टूबर 2025 | स्नान और सात्विक भोजन | व्रत की शुरुआत |
दूसरा दिन (खरना) | 26 अक्टूबर 2025 | दिनभर उपवास, शाम को गुड़-चावल का प्रसाद | आत्मशुद्धि का दिन |
तीसरा दिन (संध्या अर्घ्य) | 27 अक्टूबर 2025 | अस्त होते सूर्य को अर्घ्य | आभार और श्रद्धा |
चौथा दिन (उषा अर्घ्य) | 28 अक्टूबर 2025 | उगते सूर्य को अर्घ्य और पारण | व्रत का समापन |
इन चारों दिनों में व्रती अत्यंत पवित्रता, संयम और श्रद्धा का पालन करते हैं।
छठ पूजा की पूजा-विधि
- नहाय-खाय (पहला दिन):
इस दिन व्रती स्नान करके घर को शुद्ध करती हैं और सात्विक भोजन बनाती हैं। भोजन में आमतौर पर कद्दू-भात और चने की दाल का प्रयोग किया जाता है।
माना जाता है कि यह शरीर और मन की शुद्धि का पहला चरण है। - खरना (दूसरा दिन):
इस दिन व्रती पूरे दिन उपवास रखती हैं और सूर्यास्त के बाद गुड़-चावल और दूध से प्रसाद बनाकर सूर्य को अर्पित करती हैं। इसके बाद परिवारजन प्रसाद ग्रहण करते हैं। - संध्या अर्घ्य (तीसरा दिन):
इस दिन व्रती रंगीन साड़ियों में सुसज्जित होकर घाट पर जाती हैं। वहाँ वे अस्त होते सूर्य को दूध, जल और प्रसाद से अर्घ्य देती हैं।
घाटों पर दीपक जलाए जाते हैं और गीत-भजन की गूंज वातावरण को भक्ति से भर देती है। - उषा अर्घ्य (चौथा दिन):
अंतिम दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। यह छठ पूजा का सबसे महत्वपूर्ण क्षण होता है, जो नवजीवन और नई शुरुआत का प्रतीक है।
अर्घ्य के बाद व्रती अपना व्रत पारण करती हैं और परिवार के साथ प्रसाद ग्रहण करती हैं।
छठ पूजा में बनने वाले प्रमुख प्रसाद
छठ पूजा का प्रसाद पूरी तरह से सात्विक और प्राकृतिक सामग्री से तैयार किया जाता है। इनमें शामिल हैं:
- ठेकुआ (थेका) – गेहूं के आटे, घी और गुड़ से बना मीठा पकवान
- गुड़-चावल (खरना का प्रसाद)
- केलों, नारियल और गन्ने का प्रसाद
- सात किस्म के फल — पवित्रता का प्रतीक
छठ पूजा में बनाया गया प्रसाद व्रती की शुद्ध निष्ठा और भक्ति का प्रतीक होता है। इसे अत्यंत सम्मानपूर्वक ग्रहण किया जाता है।
छठ पूजा और सामाजिक एकता
छठ पूजा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि सामाजिक एकता का प्रतीक भी है।
घाटों पर जाति, धर्म, वर्ग और लिंग का कोई भेद नहीं रहता। हर व्यक्ति छठी मैया की आराधना में समान भाव से शामिल होता है।
यह पर्व महिलाओं को सशक्त और आध्यात्मिक रूप से स्वतंत्र बनाता है, क्योंकि इस व्रत का नेतृत्व मुख्यतः महिलाएँ करती हैं।
हालाँकि पुरुष भी श्रद्धा के साथ इस व्रत में भाग लेते हैं।
आधुनिक युग में छठ पूजा
समय के साथ छठ पूजा का स्वरूप आधुनिक हुआ है, लेकिन इसकी मूल भावना वही है —
“सूर्य के प्रति कृतज्ञता और परिवार के लिए मंगलकामना।”
आज लोग विदेशों में भी छठ पूजा मनाते हैं — न्यूयॉर्क, लंदन, दुबई और सिंगापुर जैसे शहरों में भी भारतीय समुदाय विशेष आयोजन करता है।
सोशल मीडिया के ज़रिए लोग वर्चुअल अर्घ्य, डिजिटल भक्ति गीत और लाइव स्ट्रीमिंग के माध्यम से इस पर्व से जुड़ते हैं।
सरकारें भी अब घाटों पर पर्यावरण-मित्र सजावट, LED दीपक और सुरक्षा व्यवस्थाओं पर ध्यान दे रही हैं।
इससे यह पर्व संस्कृति और सतत विकास (Sustainability) दोनों का सुंदर उदाहरण बन गया है।
छठ पूजा के दौरान सावधानियाँ और सुझाव
- व्रत करने से पहले स्वास्थ्य का ध्यान रखें, यदि आवश्यक हो तो डॉक्टर की सलाह लें।
- प्रसाद बनाते समय रसोई में पूर्ण शुद्धता रखें — न तो नमक, न प्याज, न लहसुन।
- प्लास्टिक या कृत्रिम सजावट से बचें, पर्यावरण के अनुकूल सामग्री का प्रयोग करें।
- घाटों पर स्वच्छता और सुरक्षा का विशेष ध्यान रखें।
- पूजा स्थल पर शांत और संयमित वातावरण बनाए रखें।
छठ पूजा के गीत और भावनाएँ
छठ पूजा का सबसे मनमोहक हिस्सा हैं इसके पारंपरिक गीत —
“केलवा के पात पे उगेलन सूरज देव” और “रुनक-झुनक बाजे पायलिया” जैसे भजनों में लोकसंस्कृति की आत्मा बसी है।
ये गीत माँ और सूर्य के प्रति समर्पण और विश्वास को व्यक्त करते हैं।
छठ पूजा: एक मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से
छठ पूजा एक मेडिटेशन-जैसा अनुभव भी है।
चार दिनों का उपवास, अनुशासन और मौन साधना मनुष्य को भीतर से शांत और स्थिर बनाते हैं।
सूर्य के सामने ध्यान लगाना सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है, जिससे तनाव कम होता है और मानसिक संतुलन बढ़ता है।
निष्कर्ष – आस्था, पर्यावरण और आत्म-संयम का उत्सव
छठ पूजा भारतीय संस्कृति की आत्मा है —
जहाँ भक्ति, प्रकृति और शुद्धता तीनों का संगम होता है।
यह पर्व हमें सिखाता है कि जीवन में केवल भोग नहीं, बल्कि त्याग और संयम भी आवश्यक हैं।
सूर्य की रश्मियाँ जब अर्घ्य जल में झिलमिलाती हैं, तब ऐसा लगता है मानो पूरी सृष्टि भक्त के साथ प्रार्थना कर रही हो।
इस छठ पूजा 2025 पर हम सब मिलकर यही संकल्प लें —
“सूर्य देव और छठी मैया से शक्ति, शांति और समृद्धि की प्रार्थना करें,
और धरती माँ के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाएँ।”