भारत त्योहारों की भूमि है, जहाँ हर मास का अपना धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। इन्हीं में से एक अत्यंत शुभ अवसर है कार्तिक पूर्णिमा जो दीपों, दान और स्नान का पर्व है। यह दिन न केवल हिन्दू धर्म में बल्कि सिख और जैन परंपराओं में भी अत्यंत पूजनीय माना जाता है।
कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को “देव दीपावली” या “त्रिपुरारी पूर्णिमा” भी कहा जाता है, क्योंकि इस दिन भगवान शिव ने असुरों पर विजय प्राप्त की थी।
वर्ष 2025 में यह पावन पर्व 5 नवंबर (बुधवार) को मनाया जाएगा। आइए जानते हैं कार्तिक पूर्णिमा की तिथि, कथा, पूजा विधि और इसका आध्यात्मिक महत्व विस्तार से।
कार्तिक पूर्णिमा 2025 की तिथि और मुहूर्त
| विवरण | समय / तिथि |
|---|---|
| पूर्णिमा तिथि प्रारंभ | 4 नवंबर 2025, रात 10:36 बजे |
| पूर्णिमा तिथि समाप्त | 5 नवंबर 2025, शाम 6:48 बजे |
| स्नान एवं दीपदान का शुभ मुहूर्त | 5 नवंबर, प्रातःकाल से रात्रि चंद्र दर्शन तक |
यह दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर आता है, जो पंचांग के अनुसार वर्ष का अत्यंत शुभ दिन माना जाता है।
पौराणिक कथा और धार्मिक महत्त्व
कार्तिक पूर्णिमा से जुड़ी कई पौराणिक कथाएँ हैं, जिनमें प्रमुख तीन हैं:
1️⃣ त्रिपुरारी पूर्णिमा:
त्रिपुरासुर नामक दानव ने तीन नगरों (त्रिपुर) में अपना साम्राज्य स्थापित किया था और देवताओं को आतंकित कर दिया था। देवताओं की प्रार्थना पर भगवान शिव ने “पाशुपत अस्त्र” से उसका वध किया।
इस विजय के दिन को “त्रिपुरारी पूर्णिमा” कहा गया और इसे अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक माना गया।
2️⃣ देव दीपावली:
कथाओं के अनुसार, देवताओं ने शिव की विजय का उत्सव मनाने के लिए इस दिन आकाश और धरती पर दीप प्रज्वलित किए थे। इसलिए यह दिन “देव दीपावली” कहलाया।
3️⃣ मत्स्य अवतार कथा:
कहा जाता है कि भगवान विष्णु ने इसी दिन मत्स्य अवतार लिया था, जिससे पृथ्वी पर जीवन का संरक्षण हुआ। इसलिए यह दिन भगवान विष्णु की उपासना के लिए भी अत्यंत शुभ माना जाता है।
कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान और दीपदान का महत्व
इस दिन पवित्र नदियों — गंगा, यमुना, गोदावरी, नर्मदा या किसी भी जलाशय में स्नान करना अत्यंत पुण्यकारी माना गया है।
माना जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान करने से सारे पाप नष्ट होते हैं और व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
दीपदान का भी इस दिन विशेष महत्त्व है।
मंदिरों, घरों और घाटों पर असंख्य दीपक जलाकर देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है।
इसे देव दीपावली कहा जाता है — जब काशी जैसे शहरों में गंगा तटों पर लाखों दीप जलाकर भगवान को धन्यवाद दिया जाता है।
पूजा-विधि और व्रत का नियम
कार्तिक पूर्णिमा की पूजा विधि अत्यंत सरल और शुद्धता पर आधारित होती है:
- प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें।
- पवित्र नदी, तालाब या घर पर ही स्नान जल में गंगाजल मिलाकर स्नान करें।
- भगवान विष्णु, भगवान शिव और माता लक्ष्मी की पूजा करें।
- दीपक जलाएँ — एक दीपक घर में, एक मंदिर में और एक जल में प्रवाहित करें।
- तुलसी के पौधे के पास दीप जलाना विशेष शुभ माना गया है।
- भोजन में सात्विक आहार ग्रहण करें और यथासंभव व्रत रखें।
- दान करें — वस्त्र, अनाज, तिल, घी, दीपक, अन्न या धन का दान करें।
कहा जाता है कि इस दिन किया गया एक दीपदान लाख दीपदान के समान फल देता है और दान का पुण्य दस गुना बढ़ जाता है।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन क्या करें और क्या न करें
✔ करें:
- प्रातः स्नान कर पवित्र वस्त्र धारण करें।
- दीपदान, तुलसी पूजन और दान करें।
- भगवान शिव, विष्णु और लक्ष्मी की आराधना करें।
- जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र और अन्न दान करें।
✘ न करें:
- इस दिन मांसाहार या नशे का सेवन न करें।
- किसी का अपमान या क्रोध से व्यवहार न करें।
- पूजा में दिखावा न करें — यह दिन विनम्रता और शुद्ध भाव का प्रतीक है।
वैज्ञानिक दृष्टि से कार्तिक पूर्णिमा
कार्तिक मास के दौरान वातावरण अत्यंत शुद्ध और शांत होता है।
इस समय जलवायु परिवर्तन के कारण सूर्य की किरणें संतुलित रूप में धरती पर पड़ती हैं, जिससे सूर्य स्नान और दीपदान शरीर और मन के लिए लाभकारी माना गया है।
दीपक का प्रकाश न केवल प्रतीकात्मक रूप से अंधकार मिटाता है, बल्कि यह मच्छर और कीटाणु निवारण में भी सहायक होता है।
निष्कर्ष – प्रकाश, दान और आध्यात्मिकता का पर्व
कार्तिक पूर्णिमा 2025 केवल एक धार्मिक तिथि नहीं, बल्कि यह मानवता, शांति और सद्भाव का संदेश देने वाला दिवस है।
यह दिन हमें याद दिलाता है कि असली पूजा केवल मंदिर में दीप जलाना नहीं, बल्कि अपने मन के अंधकार को मिटाना है।
आइए इस वर्ष हम सभी मिलकर संकल्प लें —
“हम अपने जीवन में दया, दान और दीप की रौशनी फैलाएँ,
ताकि हर हृदय में कार्तिक पूर्णिमा की तरह शांति और उजाला हो।”