गायत्री मंत्र भारतीय संस्कृतियों के धार्मिक और आध्यात्मिक साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह मंत्र वेदों के एक प्राचीन ग्रंथ, ऋग्वेद, से लिया गया है और इसे हिन्दू धर्म में अत्यधिक पवित्र और प्रभावशाली माना जाता है। गायत्री मंत्र की उच्च महत्वता और इसका गहन अर्थ इस लेख में विस्तृत रूप से समझा जाएगा।
गायत्री मंत्र का पाठ:
ॐ भूर् भुवः स्वः।
तत्सवितुर् वरेण्यं।
भर्गो देवस्य धीमहि।
धियो यो नः प्रचोदयात्।।
गायत्री मंत्र का विश्लेषण:
- ॐ: यह शब्द ब्रह्मा, विष्णु और महेश (त्रिदेव) के संयोजन का प्रतीक है और समग्र ब्रह्मांड के साथ एकता का प्रतीक भी है। यह असीम शक्ति और दिव्यता का सूचक है।
- भूर् भुवः स्वः: ये तीनों शब्द तीनों लोकों—भू लोक (पृथ्वी), भुवः लोक (अंतरिक्ष) और स्वः लोक (स्वर्ग)—के प्रतीक हैं। ये शब्द यह बताते हैं कि गायत्री मंत्र का प्रभाव सम्पूर्ण ब्रह्मांड में फैला हुआ है।
- तत्सवितुर् वरेण्यं: इसका अर्थ है ‘उस दिव्य प्रकाश के लिए जो सविता (सूर्य) के रूप में प्रकट होता है।’ यह हमें उस परम सत्ता की ओर इंगित करता है, जो सम्पूर्ण सृष्टि का प्रकाश और ऊर्जा है। ‘वरेण्यं’ शब्द का मतलब है ‘पूजनीय’ या ‘प्रणामयोग्य’।
- भर्गो देवस्य धीमहि: इसका तात्पर्य है ‘हम उस दिव्य प्रकाश (भर्ग) के बारे में ध्यान करते हैं, जो देवता के रूप में है।’ ‘धी’ का मतलब है ‘बुद्धि’ या ‘ज्ञान’, और ‘महि’ का मतलब है ‘ध्यान’ या ‘विचार’। यह हमें उस दिव्य ज्ञान की ओर मार्गदर्शन करता है जो आत्मा के उन्नति के लिए आवश्यक है।
- धियो यो नः प्रचोदयात्: इसका अर्थ है ‘वह (दिव्य प्रकाश) हमारे बुद्धि को प्रज्वलित करे और हमें सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा दे।’ यहाँ ‘प्रचोदयात्’ का मतलब है ‘प्रेरित करना’ या ‘प्रज्वलित करना’।
गायत्री मंत्र का महत्व:
गायत्री मंत्र की महत्ता केवल इसके उच्चारण में नहीं बल्कि इसके गहरे अर्थ और उद्देश्य में है। यह मंत्र जीवन की उच्चतम सच्चाई और ज्ञान की प्राप्ति के लिए एक मार्गदर्शक है। यह मन और आत्मा को शुद्ध करने और आंतरिक शांति प्राप्त करने के लिए एक शक्तिशाली साधना है। यह साधक को अपने आत्मज्ञान और ब्रह्मांडीय ऊर्जा के संपर्क में लाने के लिए प्रेरित करता है।